कभी कटनी का दशहरा पूरे प्रदेश में मिसाल हुआ करता था।
गाँव-गाँव से माताएं, बहनें, भाई परिवार सहित यहाँ आते थे।
त्यौहार में अपनापन, सम्मान और भव्यता झलकती थी।
लेकिन आज?
हमने ही अपनी लापरवाही, अपनी अहंकारी आदतों और अपने नशे में चूर दिमाग़ से इस परम्परा को गर्त में धकेल दिया।
👉 माताओं-बहनों के लिए न पीने के पानी की व्यवस्था,
👉 न शौचालय की सुविधा,
👉 न सम्मान, न सुरक्षा…
बल्कि उनके साथ अभद्र व्यवहार, नशेड़ी हुड़दंग, मारपीट और गुटबाज़ी।
जो लोग दशहरे की शोभा थे, उन्हें ही हमने किनारे कर दिया।
आज हर कोई अपनी मूर्ति, अपनी रामलीला, अपना मंच सबसे बड़ा दिखाना चाहता है।
“मेरी मूर्ति नंबर वन… मेरी रामलीला सबसे खास…”
अरे! ये त्योहार तुम्हारी व्यक्तिगत दुकानदारी है या समाज की साझा धरोहर?
सच बोलना पड़ेगा –
हमने दशहरे को भक्ति का नहीं,
बल्कि अपने-अपने वर्चस्व का अखाड़ा बना दिया है।
और कटनी के तथाकथित “बुद्धिजीवी”, “गणमान्य” और “सभ्य नागरिक”…
क्या कभी सोचा है कि हम शहर को आखिर दे क्या रहे हैं?
किस परम्परा को संवार रहे हैं?
या सिर्फ अपनी-अपनी कुर्सी और नाम चमका रहे हैं?
🚨 चेतावनी है –
अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले सालों में दशहरा सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाएगा।
वो वैभव, वो रौनक, वो आकर्षण…
सब कुछ मिट जाएगा।
अब भी वक्त है –
कटनी की जनता, नौजवान, माताएं-बहनें और समझदार नागरिक मिलकर आगे आएं।
सम्मान, सुरक्षा और सहयोग को प्राथमिकता दें।
व्यवस्थाओं में भागीदारी करें।
तभी हम अपनी उस पुरानी गौरवशाली विरासत को वापस ला पाएंगे
जिसे हम खुद अपने हाथों से नष्ट कर रहे हैं।
सत्य प्रकाश द्विवेदी (प्रदीप महाराज ✍️✍️)